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IIT-BHU ने प्राकृतिक विधि से कारखानों के प्रदूषित पानी को बना दिया पीने योग्य

आइआइटी-बीएचयू में प्राकृतिक तत्वों का उपयोग कर दूषित जल को पीने योग्य बनाने की तकनीक खोजी गई है। संस्थान के बाॅयोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग में नीम और सागौन लकड़ी के बुरादे से सीवेज के पानी में से केमिकल हानिकारक धातुओं और गैसों को अलग करने में सफलता मिली है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 25 Mar 2021 05:19 PM (IST)Updated: Thu, 25 Mar 2021 05:19 PM (IST)
IIT-BHU ने प्राकृतिक विधि से कारखानों के प्रदूषित पानी को बना दिया पीने योग्य
आइआइटी-बीएचयू में प्राकृतिक तत्वों का उपयोग कर दूषित जल को पीने योग्य बनाने की तकनीक खोजी गई है।

वाराणसी, जेएनएन। आइआइटी-बीएचयू में प्राकृतिक तत्वों का उपयोग कर दूषित जल को पीने योग्य बनाने की तकनीक खोजी गई है। संस्थान के बाॅयोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग में नीम और सागौन लकड़ी के बुरादे से सीवेज के पानी में से केमिकल, हानिकारक धातुओं और गैसों को अलग करने में सफलता मिली है। विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. विशाल मिश्रा और उनकी शोधार्थी ज्योति सिंह ने बेहद कम लागत में इस इकोफ्रैंडली तकनीक को तैयार किया है।

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शोधकर्ताओं ने सागौन के बुरादे का चारकोल और नीम के डंठल की राख बनाकर अलग-अलग पाउडर तैयार किया गया। राख बनाने के लिए कड़ी के बुरादे को सोडियम थायोसल्फेट के साथ मिलाकर नाइट्रोजन के वातावारण में गर्म कर किया गया, जिससे यह एक्टीवेटेड चारकोल (कोयला) के रूप में परिवर्तित हो गया। इन्हे अलग-अलग चरण में पानी में घोला गया। पहले चरण में सागौन के चारकोल से पानी में मौजूद गैसों, आयन, सल्फर, सेलेनियम जैसे हानिकारक घटकों खत्म कर दिए गए, इसके बाद दूसरे चरण में नीम की राख से तांबे, निकल और जस्ता से युक्त प्रदूषित पानी का उपचार किया गया। इस प्रक्रिया में एक लीटर पानी में एक ग्राम पाउडर घोला गया, जिसके बाद सारे प्रदूषक तत्व उसमें अवशोषित हो गए।

घर में लगे आरओ हो जाएंगे सस्ते

डा. विशाल मिश्रा के अनुसार घर के आरओ सिस्टम में लगे एक्टिव चारकोल के स्थान पर सागौन लकड़ी के बुरादे से बने कोयले का उपयोग पानी को शुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे आरओ की लागत भी कम आएगी और पानी में उपलब्ध मिनरल्स सुरक्षित रहेंगे। उन्होंने बताया कि इसका सबसे अहम उपयोग है गंगाजल की सफाई। गंगा के प्रदूषण में निकल, जिंक, काॅपर की सबसे अधिक समस्या है। कारखाने अपने दूषित जल को ईटीपी (एफिशियेंट ट्रीटमेंट प्लांट) के माध्यम से शोधन कर गंगा में जल छोड़ते हैं। इससे जल का रासायनिक तत्व नहीं फिल्टर हो पाता है, वहीं ईटीपी में शोधन से पहले दूषित पानी में इस पाउडर को  मिला दिया जाए तो सारे प्रदूषक अवशोषित हो जाएंगे। डा. मिश्रा के अनुसार गंगाजल को भी बेहद सस्ते तरीके से साफ करने की पहल की जा सकती है।

इन रोगों से मिलेगी निजात

पानी में मौजूद निकल से अस्थमा, न्यूरोडिस आर्डर, नोजिया, गुर्दे और फेफड़े का कैंसर सबसे अधिक होता है। वहीं जिंक से थकान, सुस्ती, चक्कर आना और अत्यधिक प्यास की समस्या सामने आती है। पानी में तांबे की अधिकता जीनो-टाॅक्सिक की तरह से कार्य करता है, जिससे डीएनए में बदलाव हो सकते हैं। इसके साथ ही यह यकृत और गुर्दे को भी नुकसान पहुंचा सकता है।


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